July 11, 2025

rashtriyadiyasamachar

एक राष्ट्र, एक विधान, एक नजर,एक खबर

दून मेडिकल कालेज के हार्ट स्पेशलिस्ट डॉक्टर अमर उपाध्याय ने मनवाया अपनी काबलियत का लोहा , केवल दो माह के नवजात शिशु का बिना चीरा लगाए ही कर दिया हार्ट का ऑपरेशन !

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून स्थित दून अस्पताल में चिकित्सा विज्ञान ने एक बार फिर करिश्मा कर दिखाया है। यहां सिर्फ दो महीने के एक शिशु की जटिल हृदय सर्जरी सफलतापूर्वक की गई—वह भी बिना किसी चीरे के। यह सर्जरी राज्य के सरकारी चिकित्सा तंत्र की दक्षता और समर्पण का उदाहरण बन गई है।

हरबर्टपुर निवासी उस्मान एक माह पूर्व अपने नवजात बेटे को लेकर देहरादून आए थे, जब बच्चे की सांस तेज चलने और अस्वस्थता के लक्षण दिखे। जांच में निमोनिया की पुष्टि हुई और साथ ही डॉक्टरों ने हृदय की जांच कराने की सलाह दी। ईको जांच में यह सामने आया कि बच्चे के दिल में एक छेद है और साथ ही ऑर्टिक वाल्व में गंभीर संकुचन भी है। इस जटिल स्थिति को चिकित्सा भाषा में Severe Aortic Stenosis with PDA (Patent Ductus Arteriosus) कहा जाता है।

बच्चे को दून अस्पताल के कार्डियोलॉजी विभाग की ओपीडी में लाया गया, जहां प्रारंभिक जांच के बाद डॉक्टरों ने सर्जरी की आवश्यकता बताई, लेकिन पहले निमोनिया का इलाज करना जरूरी समझा गया। बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. तन्वी सिंह की निगरानी में बच्चे का इलाज हुआ। कई दिनों तक प्रयास के बावजूद जब बच्चा ऑक्सीजन सपोर्ट से मुक्त नहीं हो पाया, तब सर्जरी का निर्णय लिया गया।

करीब एक घंटे चली इस सर्जरी में बिना चीरा लगाए बालून तकनीक की मदद से बच्चे के सिकुड़े हुए वाल्व को खोला गया। इस प्रक्रिया को Balloon Aortic Valvotomy कहा जाता है। ऑपरेशन में एनेस्थीसिया विभाग के प्रोफेसर डॉ. अतुल सिंह ने अहम भूमिका निभाई।

*दोनों हृदय रोग एक-दूसरे को जटिल बना रहे थे – डॉ. अमर उपाध्याय*
कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. अमर उपाध्याय ने बताया कि बच्चे के दिल में दो जन्मजात समस्याएं थीं, जिनमें से एक समस्या दूसरी को और जटिल बना रही थी। उन्होंने बताया कि पहले हार्ट के विभिन्न चैंबरों से ब्लड सैंपल लेकर स्थिति को समझा गया, और फिर सावधानीपूर्वक बालून ऑर्टिक वाल्वोटॉमी की गई। डॉ. उपाध्याय ने खुशी के साथ बताया ऑपरेशन सफल रहा, बच्चा अब स्वस्थ है और कल उसे डिस्चार्ज किया जाएगा ।

यह सर्जरी न केवल चिकित्सा क्षेत्र की उपलब्धि है, बल्कि यह साबित करती है कि सरकारी अस्पतालों में भी विश्वस्तरीय इलाज संभव है । बस जरूरत होती है समर्पण, विशेषज्ञता और तकनीक के संतुलन की। इस जटिल प्रक्रिया को अंजाम देने वाली टीम में डॉ. ऋचा, डॉ. साई जीत, डॉ. अस्मिता, डॉ. शोएब और डॉ. अल्फिशा जैसे युवा डॉक्टरों ने भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

You may have missed

Share