August 4, 2025

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एक साल भी पूरा नही कर पाती राजधानी की सडके, आखिर जिम्मेवार कौन विभाग या ठेकेदार, क्या है सडको की खराब गुणवत्ता का कारण

सड़कों की मियाद को लेकर गारंटी क्यों नहीं देता विभाग
समय से पूर्व टूटने वाली सड़कों के जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई क्यों नहीं

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में सड़कों की दुर्दशा से लोग बेहद परेशान हैं। अपनी कमियां छिपाने के लिए विभाग ने आधे अधूरे पैच लगाकर अपनी कमियों को ढकने का प्रयास किया है लेकिन एक बड़ा सवाल लोगों के जहन में यह भी उठ रहा है कि सड़कों की गुणवत्ता की मियाद को लेकर क्या सरकार की ओर से टेंडर नीति में कोई शर्त नहीं रखी जाती?

मानसून के बाद से उत्तराखंड के सड़कों की जो दुर्दशा हुई उसकी मरम्मत का ध्यान अभी तक संबंधित विभागों को शायद नहीं हो पाया है। वाहनों से लेकर मैदान तक सड़के बेहद क्षतिग्रस्त स्थिति में है जिनके कारण कई दुर्घटनाएं भी सामने आ चुकी हैं। उत्तराखंड की राजधानी में सड़कों के हाल इस प्रकार हो चुके हैं कि विपक्ष को सड़कों को मुद्दा बनाकर सड़क पर उतरना पड़ा। हालांकि इसके बाद भी सड़कों की दशा सुधर पाएगी इसमें अभी संदेही है। उत्तराखंड के अधिकांश नगरों में भी कमोबेश यही स्थिति है और सड़कों के निर्माण को लेकर विभागीय अधिकारियों के खिलाफ किसी भी कार्रवाई का कोई मामला भी देखने को नहीं मिला है।

उत्तराखंड में बारिश का जोर अभी तक है लेकिन इससे पूर्व मानसून की बारिश सरकारी व्यवस्थाओं की पोल खोल चुकी है। तमाम ऐसे निर्माण जो हाल ही में किए गए थे बरसात के साथ बह गए जिनमें देहरादून का एक पुल का हिस्सा पहाड़ी क्षेत्रों में कई पुस्ते वह पुलिया नेस्तनाबूद हो गए। देहरादून सहित दूसरे नगरों में क्षतिग्रस्त सड़कों की सूरत को छिपाने के लिए पैकिंग का कार्य शुरू हो चुका है जो काफी घटिया किस्म का है और इसे केवल खानापूर्ति के तौर पर किया जा रहा है।

इस पूरे प्रकरण में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जिन सड़कों को लंबी अवधि के लिए बनने का दावा किया गया था वह बारिश के साथ गड्ढों में तब्दील हो गई। इन सड़कों के पीछे की पूरी प्रक्रिया तैयार करने वालों के खिलाफ क्या सरकार की ओर से कोई कार्रवाई की जाएगी इस पर अभी तस्वीर स्पष्ट नहीं है। इससे पूर्व भी गुणवत्ता हीन सड़कों के निर्माण को लेकर मंत्रालय की ओर से कभी किसी पर कार्रवाई गंभीरता से हुई हो, यह याद नहीं आता। बड़े-बड़े बजट की सड़कें भी समय से पूर्व टूट जाती हैं लेकिन इन सड़कों के बनने के पीछे जिम्मेदार लोगों पर कभी कार्रवाई नहीं होती।

उत्तराखंड सरकार बजट का एक बड़ा हिस्सा सड़कों की देखरेख एवं इन की क्वालिटी पर खर्च करती है लेकिन सड़क तक पहुंचते-पहुंचते योजना गर्त में चली जाती है। निर्माण के नाम पर भ्रष्टाचार और कमीशन खोरी की सड़क देखने को मिलती है जो वाहनों के पहियों के साथ जमीन का साथ छोड़ती चली जाती है। थोड़ी सी बारिश सड़कों का वजूद मिटा देती है और निर्माण कार्य का स्तर नजर आने लगता है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के काम करने के तरीके के बाद उनसे यह उम्मीद जनता लगा रही है कि सड़कों के निर्माण को लेकर भी वे कोई कड़ा एक्शन लेंगे ताकि इस क्षेत्र में भ्रष्टाचार करने वाले बच नहीं पाए।

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