



साल दर साल टूटते पहाड,दरकती चट्टाने,डूबते घर ,बहते मवेशी और बर्बाद होते खेत खलिहान ये सब नजारे हम हर साल देख रहे है इसके पीछे बडा हाथ है JCB , और पोकलैड जैसी मशीनो का आज से कुछ दशको पहले तक इनके दर्शन पहाड मे नही होते थे जिस तरह से विकास के नाम पर पहाडो का कटान जारी है बडे बडे फार्म हाउसो के लिए पहाडीयो को तराशने की कवायद , खनन के नाम पर नदियो का नियम विरोधी दोहन , सडको के विस्तार के लिए लाखो पेडो की बलि और बेरकीब बनते बहुमंजिला भवन जिनहे न सरकार के कायदे कानूनो का डर ,ना उच्च न्यायालय का खोफ बस अपनी मनमर्जी, अपनी हठधर्मी, अपनी हनक और अपने रसूख के कारण बैफोफ कंक्रीट कै जंगल तामीर करते रहते है


नतिजन हर साल इस तरफ कभी उस तरफ आपदा को दावत देते रहते है । इस आपदा को न्यौता देने वाले तो अपने महलो मे ऐशोआराम से सोते रहते है मरता है तो केवल वो गरीब जिसकी जीवन भर की कमाई से बना एक दो कमरे का घर जिसे मकान मान कर ऊट के मुह मे जीरा के बराबर मुआवजा देकर बडी शान के साथ चैक हाथो मे थमा कर फोटो छपवा दिया जाता है जिसके घर का चिराग इस तुफान मे बुझ गया भला वो उसकी यादो को चैक मे कैसै देख सकता है जिसके धन (गाय,भेस बकरी) उसकी आखो के सामने इस जलजले मे बह गये उन जानवरो को अपनी आखो से बहते हुए देख कर मालिक कैसै बिलख बिलख कर रोया होगा उस ममता को क्या कोई पूरा कर पाता होगा, नही हरगिज नही अब हमे आपको और सरकाली मशीनरी सहित हमारे आकाऔ को हमारे मुस्तकिल को बचाने के लिए कोई ठोस कदम धरातपर उठाने ही पडेगे और हमारे पहाड पर साल दर साल बढते बोझ को कम करना ही पढेगा वरना कुछ दशको बाद ना ये पहाड बचेगे ना हम बचेगे और ना ही बचेगी पहाड मे जिदगी बस बचेगी तो सिर्फ विरानी, विलानी और सिर्फ विरानी

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