गर्व की बात है कि पिछले एक दशक से मृत्यु के पश्चात अपनी देह का दान करने में लोगों की रुचि बढ़ रही है। मृत्यु के बाद हमारा नश्वर शरीर किसी ना किसी रुप में काम आएगा, ऐसी नि:स्वार्थ सोच ने देहदान करने वालों की संख्या में बढ़ोतरी की है। साथ ही यह विचार भी आता है कि क्या हमारे इस मृत शरीर का उपयोग अच्छे कार्य के लिए किया जाएगा? अगर मृत्युपरांत इस नश्वर शरीर को अग्नि के सुपुर्द नहीं किया गया तो हम मोक्ष के भागी होंगे भी या नहीं? क्या हमारे हिन्दू-धर्म में देहदान करना मान्य है? अंतिम-क्रिया किये बिना मृतक के मृत्युपरांत कर्मकांड किस प्रकार संपन्न होंगे? कहीं हम देखा-देखी तो देहदान का संकल्प नहीं ले रहे हैं? ऐसे बहुत सारे प्रश्न हैं जिनके उत्तर हमारे मन में उमड़ते रहते हैं।लेकिन इन सब भ्रान्तियो से उपर उठकर देहरादून मे रहने वाली श्रीमति लक्ष्मी अग्रवाल और उनके पति श्री सूरज प्रसाद अग्रवाल ने इस महानतम दान “देहदान ” का संकल्प लिया आपको बता दे किअवकाश प्राप्त शिक्षिका ने अपने जन्मदिवस पर ये फैसला लिया नेत्र,अंग,देहदान का संकल्प* केंद्रीय विद्यालय नम्बर 1 सालावाला से अवकाश प्राप्त शिक्षिका श्रीमती विजयलक्ष्मी अग्रवाल ने आज अपने जन्मदिवस के अवसर पर अपने पति श्री सूरज प्रशाद अग्रवाल जी के साथ अपने नेत्र,अंग,देहदान का संकल्प लिया। श्रीमती विजयलक्ष्मी जी भारत विकास परिषद की क्लेमनटाउन शाखा की भी पूर्व अध्यक्षा भी रही हैं। समाज सेवा में अग्रणी शिक्षिका की ये सोच की जीते जी भी बच्चों को पढ़ाया व मृत्यु बाद भी उनकी देह बच्चों की पढ़ाई के काम आये इसी सोच के साथ इन दोनों ने आज ये सँकल्प लिया।
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