August 2, 2025

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उत्तराखंड: पछवा दून में सरकारी जमीन पर अवैध रूप से बसी मुस्लिम आबादी, कौन दे रहा जनसंख्या असंतुलन को संरक्षण,आखिर खुली आखों से मक्खी क्यो निगल रही उतराखण्ड की धामी सरकार।

वरिष्ठ पत्रकार दिनेश मानसेरा जी की कलम से

पछवां देहरादून में अवैध कब्जे का खेल।

देहरादून। हिमाचल प्रदेश और यूपी सीमा के बीच बसा हुआ देहरादून जिले का क्षेत्र जिसे पछुवा दून भी कहते हैं, जनसंख्या असंतुलन की कहानी सुना रहा है। उत्तर प्रदेश से आई मुस्लिम आबादी ने यहां की सरकारी जमीनों पर अवैध रूप से बसावट कर ली है। ग्राम सभा की जमीनों पर उन्हें बसाने में स्थानीय मुस्लिम ग्राम प्रधानों और प्रधान पतियों की भूमिका संदिग्ध मानी जा रही है। इसके अलावा नदी, नहरों के किनारे, वन विभाग की जमीनों पर मुस्लिम आबादी ने अवैध रूप से कच्चे पक्के मकान खड़े कर लिए हैं। अब इनके आधार कार्ड, वोटर लिस्ट में नाम दर्ज करवाने का काम भी योजनाबद्ध तरीके से पूरा कराया जा रहा है।

जानकारी के अनुसार पछुवा देहरादून के गांव के गांव जो कभी हिंदू बहुल हुआ करते थे वे मुस्लिम बहुल हो गए हैं। यूपी, बिहार, असम, बंगाल, यहां तक कि बांग्लादेशी, म्यांमार के रोहिंग्या मुस्लिम आबादी पछुवा दून में आकर कैसे बसती चली गई? ये बड़ा सवाल है। प्रेम नगर से हिमाचल के पौंटा साहिब तक जाने वाली शिमला बाई पास, चकराता रोड के आसपास के इलाकों में देवभूमि उत्तराखंड का सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक स्वरूप बिगड़ चुका है। इस क्षेत्र में मस्जिदों, मदरसों की ऊंची मीनारें दिखाई देती हैं। आखिर ऐसा कैसे हुआ कि पिछले कुछ सालो में ये इलाका एकदम बदल गया और यहां हिंदू अल्पसंख्यक होते चले गए । ये खेल हरीश रावत की कांग्रेस सरकार के समय शुरू हुआ जो कि अभी तक चल रहा है।

क्या लचर भू-कानून की वजह से ऐसा हुआ ?

उत्तराखंड- यूपी की सीमा वाला ये क्षेत्र हिमाचल प्रदेश से लगता है। हिमाचल में सख्त भू-कानून की वजह से कोई भी बाहरी व्यक्ति वहां जमीन नहीं खरीद सकता और न ही कब्जा कर सकता है। मुस्लिम आबादी वहां बाग-बगीचे में कारोबार करने जाती है और अस्थायी रूप से रहती है और वापस चली जाती है। किंतु उत्तराखंड में ऐसा नहीं है, जिसका फायदा उठाते हुए बाहरी राज्यों के मुस्लिमों ने इस क्षेत्र में अपनी अवैध बसावट कर ली और जहां मौका मिला वहां जमीनों पर कब्जे कर लिए और ये सब एक योजना के तहत आज भी चल रहा है इतना ही नही देवभूमी मे अवैध रूप से बसने वाले ये लोग प्रदेश के विकास मे भले कोई हिस्सदारी ना करते हो लेकिन देवभूमि के अपराध मे बढ चढ कर भाग ले रहे है इसकी बानगी समय समय पर पुलिस की कार्यवाई मे साफ साफ दिखाई पडती है हालाकि पुलिस समय समय पर सत्यापन अभियान चला कर इनके अवैध धंधो पर लगाम लगाने का प्रयास करती है तो इनके वोट का वजन पुलिस और प्रशासन भारी पड जाता है।

ये बस्तीया एक दम से ही वजूद मे नही आती है सबसे पहले कुछ मुस्लिम परिवार यहां हिंदू बहुल गांवों में आकर बसेर है फिरी धीरे-धीरे वे अपने रिश्तेदारों और दोस्तो को लाकर बसाने लगेते है । फिर धनबल और वोट बैंक के बलबूते ग्राम प्रधान बनते चले जाते है उसके बाद ग्राम सभा की सरकारी जमीनों पर अपने और रिश्तेदारों को लाकर बसाना शुरू कर दिया ताकि उनका वोटबैंक और मजबूत होता जाए। यहीं मस्जिदें बनीं और मदरसे खुलते चले गए। अवैध कब्जे करने का खेल सरकार की सिंचाई, पीडब्ल्यूडी, वन विभाग की जमीनों पर भी धनबल और वोट बैंक की राजनीति के दमखम पर आज भी चल रहा है और इसमें नेताओ का संरक्षण भी मिलता रहा है।

राजनीति संरक्षण के पीछे बड़ी वजह यहां की नदियों में चल रहा खनन है, जहां हजारों की संख्या में मुस्लिम समुदाय ने अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया है जोकि यहां के राजनीति से जुड़े नेताओं को धनबल की आपूर्ति करते हैं। उत्तराखंड सरकार या शासन ग्राम सभाओं की जमीनों की जिस दिन गंभीरता से जांच करवा लेगा तो उसे मालूम चल जाएगा कि उसकी ग्राम सभाओं की जमीन आखिर कहां चली गई।

ढकरानी में शक्ति नहर किनारे अवैध कब्जे हुए, धामी सरकार ने उन्हें हटाया भी, लेकिन अब फिर होने लगे। इसके पीछे बड़ी वजह ये भी बताई गई कि कब्जे हटे लेकिन जल विद्युत निगम ने उन्हें तारबाड़ से सुरक्षित नहीं किया। इस अभियान का दूसरा चरण शुरू होना था, वह भी राजनीतिक दबाव की वजह से रुका हुआ है। इसी तरह सहसपुर, जीवन गढ़, तिमली, हसनपुर कल्याणपुर, केदाखाला, सरबा आदि गांवों की हालत है जहां ग्राम सभाओं की सरकारी जमीन पर मुस्लिम आबादी यहां के प्रधानों ने लाकर बसा दी है।

प्रधानों के फर्जी दस्तावेज

ऐसी चर्चा भी है कि ढकरानी और सहसपुर के ग्राम प्रधानों ने कथित रूप से अपने फर्जी दस्तावेजों के जरिए ही अपना कार्यकाल काट लिया और इनके मामले अदालती कार्रवाई में लटके हुए हैं। इन्हे किसका संरक्षण मिला ये सवाल भी उठना लाजमी है?

दिल्ली-देवबंद से चलता है संरक्षण का खेल

जानकार बताते है कि सब कुछ योजनाबद्ध तरीके से यहां हो रहा है। इसके पीछे राजनीतिक ही नहीं मजहबी शक्तियां भी काम कर रही हैं। दिल्ली-देवबंद की इस्लामिक संस्थाएं यहां पूरी तरह से मस्जिद और मदरसों में सक्रिय हैं और जमात के जरिए यहां मुस्लिम समुदाय को संचालित किया जा रहा है। मुस्लिम सेवा संगठन और अन्य संगठनों के माध्यम से राजनीति-मजहबी ताकत को तेजी से बढ़ाया जा रहा है। ग्राम सभाओं पर इनका नियंत्रण हो चुका है। आगे जिला पंचायत, फिर विधानसभा सीटों में इनका असर दिखाई देगा। ऐसे ही नहीं यहां मुस्लिम राजनीतिक पार्टी या मुस्लिम यूनिवर्सिटी की आवाज पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान सुनाई दी थी।

वन विभाग के अधिकारी खामोश

पछुवा देहरादून में नदियों किनारे अवैध रूप से बस गए लोगों को हटाने के आदेश कई बार मुख्यमंत्री कार्यालय से दिए गए, किंतु इसका असर क्षेत्र के डीएफओ, वन निगम के अधिकारियों में नहीं दिखाई दिया। कहा जा रहा है कि इस अतिक्रमण को नेताओं और नौकरशाहों का संरक्षण मिला हुआ है।

कांवड़ियों पर पथराव

इसी इलाके में राशिद पहलवान और उसके साथियों ने कांवड़ियों पर पथराव किया था। राशिद पर गैंगस्टर एक्ट लगा और उसकी जमानत भी हो गई, जमानत होने के बाद जिस तरह से क्षेत्र में जुलूस निकाला गया, उसके पीछे मंशा हिंदू समुदाय को अपना दबदबा दिखाने की थी। राशिद पहलवान, मुस्लिम सेवा संगठन का संयोजक है और यहां कथित रूप से अवैधखनन, सरकारी भूमि कब्जाने जैसे मामले में सक्रिय रहता आया है।

 

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