December 24, 2024

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उत्तराखण्ड के नैनीताल की रहने वाली दिवा साह की बनाई फीचर फ़िल्म ‘बहादुर दा ब्रेव’ को स्पेन के सैन सेबेस्टियन इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल में नए निदेशक(न्यू डायरेक्टर)की श्रेणी में मिला कुटजाबैंक अवार्ड , पुरुस्कार मिलने के बाद दिवा के रिश्तेदारों और मित्रों ने इस उपलब्धि पर जताई खुशी।

सोनू कुमार (राष्ट्रीय दिया समाचार) नैनीताल 

उत्तराखण्ड में नैनीताल की रहने वाली दिवा साह की बनाई फीचर फ़िल्म ‘बहादुर दा ब्रेव’ को स्पेन के सैन सेबेस्टियन इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल में नए निदेशक(न्यू डायरेक्टर)की श्रेणी में कुटजाबैंक अवार्ड मिल गया है। शनिवार रात मिले इस पुरुष्कार के बाद दिवा के रिश्तेदारों और मित्रों ने इस उपलब्धि पर खुशी जताई है।
नैनीताल निवासी राजेश साह, फ़िल्म निर्देशन का एक जाना माना नाम है। राजेश साह की बेटी दिवा साह इनदिनों अपनी फीचर फिल्म के स्पेन में होने वाले फ़िल्म फैसस्टिवल में चयनित होने के कारण गई थी। शनिवार रात ‘बहादुर दा ब्रेव’ को स्पेन के सैन सेबेस्टियन इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल में नए निदेशक(न्यू डायरेक्टर)की श्रेणी में कुटजाबैंक अवार्ड दिया गया है। 71वें सैन सेबेस्टियन इंटरनेशनल फ़िल्म फैसस्टिवल में उन्हें प्रतिष्ठित कुटजाबैंक अवार्ड(न्यू डायरेक्टर्स)श्रेणी में मिला, जिससे उन्होंने ये अवार्ड जीतकर इतिहास रच दिया है। विशेष सिंह शेरावत की हरध्यान फिल्म्स द्वारा निर्मित इस फ़िल्म का वर्ल्ड प्रीमियर 23 सितंबर को स्पेन में हुआ था।
दिवा की मां शालिनी साह समाजसेवी गृहणी हैं। इस फीचर फ़िल्म को भारत की तरफ से प्रतिष्ठित फ़िल्म फैसस्टिवल में भाग लेने के लिए भेजा गया था। इस फैसस्टिवल में मीरा नय्यर की ‘सलाम बॉम्बे’, सत्यजीत रे की ‘चारुलता’, मृणाल सेन की ‘अंतरिम’ और रीमा दास की ‘विलेज रॉकस्टार’का नाम प्रमुखता से है। वर्ष 1953 में सैन सैबेस्टियन फ़िल्म फैसस्टिवल की स्थापना के बाद से सिनेमा जगत के यहां कई बड़े अंतराष्ट्रीय कार्यक्रमों का आयोजन हो चुका है। दिवा ने हाईस्कूल की पढ़ाई नैनीताल के आल सेंटस कॉलेज, इंटर की पढ़ाई देहरादून के समर वैली स्कूल, इंग्लिश ऑनर्स दिल्ली के गार्गी कॉलेज और यू.के.की दुरहम यूनिवर्सिटी से क्रिएटिव राइटिंग की डिग्री हासिल की।
फ़िल्म, भारत में कोविड-19 महामारी के दौरान लगे लॉकडाउन पर आधारित है। ‘बहादुर द ब्रेव’ नैपाली प्रवासी मजदूरों के संघर्ष की एक मनोरंजक कहानी है। फिल्म का नायक, हंसी, उभरते श्रम संकट से निपटने और अपने बीमार बेटे के लिए बेहतर भविष्य सुरक्षित करने के अवसर का लाभ उठाता है, जब उसका बहनोई, दिल बहादुर, उसे गोदाम में अवैध काम की पेशकश करता है। दिवा साह के निर्देशन की यह पहली फिल्म मानवीय स्थिति और प्रतिकूल परिस्थितियों के बीच आशा की निरंतर खोज पर प्रकाश डालती है।
दीवा ने सभी का आभार जताते हुए कहा कि उनकी फ़िल्म को मिले इस सम्मान से वह बहुत खुश हैं। ये पुरस्कार सिर्फ हमारी फिल्म की मान्यता नहीं, बल्कि कहानी कहने की स्थायी शक्ति और सिनेमा की अदम्य भावना का प्रमाण है। मैं हिमालय की तलहटी में बसे एक छोटे से शहर, नैनीताल से आई हूं, और मैं अपने घर के उन लोगों की बहुत आभारी हूं जो अपनी कहानियां साझा करने और फिल्म बनाने में हमारी मदद करने के लिए तैयार रहते हैं।

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